Wednesday, November 2, 2011

खादर के लोकगीत-५

खादर के लोकगीत-५

कौंचा चिमटा और नक्चुन्ड्डी
तरनाल लगा लै नै..
हे आजा रै बागड़ो, तो के कुछ ले री सै ?
हो हाथी घोड़े हम न लेन्दे..
तुड़ा दे दिए..
गऊ के जाये भुक्खे चौधरी,
तू गैरा दे दिए.

आजा रै बागड़ो ,
मै गेंठ लगा दूंगा.
हो छोड़ चौधरी, छोड़ चौधरी गड्डे जै लिए,,

गड्डे जै लिए दूर चोधरी
मै कित सै टोहुंगी ?
हो गड्डों का लारा छोड़ बागड़ो .
मै शहर घुमा दूंगा.
हो घूम घाघरे छोड़ बागड़ो
मै साढ़ी लै दूंगा.
हो जुत्ती चप्पल छोड़ बागड़ो
मै सैंडल ला दूंगा.
धरती का सोणा छोड़ बागड़ो
मै बैड ला दूंगा.
कौंचा चिमटा...

कुंवर सत्यम..

यह गीत मेरी पुस्तक " खादर संस्कृति" का संकलित अंश है. यह भारतीय कोपी राइट एक्ट के अंतर्गत मेरे नाम से सुरक्षित है .इसका किसी भी अन्य रूप में प्रयोग वर्जित है.सन्दर्भ के लिए मेरी लिखित अनुमति आवश्यक है..
धन्यवाद.

Wednesday, September 28, 2011

खादर क्षेत्र के हास्य लोक गीत-४


खादर क्षेत्र के हास्य लोक गीत-४

मै भरण गई जल नीर,
कुँए पै परदेशी.
हो छोरी तन सा नीर पिलै दै.
मै कद का फिरूँ तिसाया.. हो नोटंकी .
हो थोडा सा परे नै होले हो ,
मेरी छींट लगै सैढी पै हो परदेशी.

तो कोण से खेत का रोड़ा ,
मै असल गोप केले की हो परदेशी.

हो तो कोण सी गली का पत्थर ,
मै असल ईंट चोबारे की हो परदेशी.
तो कोण से  खेत का गन्ना ,
मै असल कली फुल्लो की हो परदेशी

मै खेत्तो रै खेत्तो घुम्या,
न मिली गोप केले की..हो नोटंकी .
मै गलियों रै गलियों फिरग्या,
न मिली ईंट चोबारे की हो नोटंकी.

तो मेरी रै गेल्लो चलिए.
मेंरै इकसठ रैणी है.,
मै उनकी बणाउ पटरैणी
मै अपणे रै धरम तै ना जैणी
तेरे आग लगै महल्लो मै
तेरी मरियो इकसठ रैणी ..

कुंवर सत्यम.

यह गीत मेरी पुस्तक " खादर संस्कृति" का संकलित अंश है. यह भारतीय कोपी राइट एक्ट के अंतर्गत मेरे नाम से सुरक्षित है .इसका किसी भी अन्य रूप में प्रयोग वर्जित है.सन्दर्भ के लिए मेरी लिखित अनुमति आवश्यक है..
धन्यवाद.

Tuesday, September 27, 2011

खादर हास्य लोक गीत-३


खादर हास्य लोक गीत-३

अपणे घरो कधी काम करया ना,
तेरी माँ करवावै सै .
छः सर पक्का धरया पीसणा,
मेरे पै पिसवावै सै ..

चुप हो जा रै गोरी,चुप हो जा ,
चुपकी हो कै सोजा.
कुछ मै पिस्सू कुछ तो पिस्से,
चून रोज का हो जै सै.

आधी रैत पहर का तड़का..
राजा नै चाक्की झोई हे .
सुण चाक्की की घोर बहाण मै,
तैण रिजाई सोई हो.

मेरी सास्सू नै पता चैल्या .
रुक्के देत्ती गई घेर मै,
घरो डरामा हो ऱ्या हो .
बहु सो रई तेरा बेट्टा पिस्से,
चाक्की मै झोट्टा जुड़ ऱ्या हो.

चाल्ली जा रै बदमाश अड़े तै
क्यूँ सोत्ता नगर जगाया रै .
गली गली छिड़ी लड़ाई .
रुक्का रोला हो ऱ्या सै.
भित्तर सै मेरा राजा लिकडया,
चून मै धोला हो ऱ्या सै .
यारी दोस्ती करै मसकरी ,
यु के चाला हो ऱ्या सै.

मेरी बहु कमजोर घणी भाई ,
चाक्की मै झोट्टा जोड्या सै.

कुंवर सत्यम .

This work is a part of my book " Khadar Culture." under publication. All rights are reserved with me. No part of this work can be reproduced in any form..Prior permission of the author is compulsory for any reference.

Monday, September 26, 2011

खादर के हास्य लोकगीत-२


खादर के हास्य लोकगीत-२

मै तो पहर पंजाबी सूंट,
कुए पै जल भरण गई .
मेरे, छोरों मै बैट्ठे भरतार ,
नज़र उसकी मेरे पै पड़ी.
हो या किस छैल की नार ?
चलै रै गजबण डट डट कै..

या उस रै छैल की नार ,
जो पजामा पहरै, नाडा लटकै..
हे मै वापिस घर नै आई ,
सजन तो मिल्या जल-भुन कै.

गोरी जिब रै लड़ाए तेरे लाड ,
सुवाई धोरै हवा कर कै.
आज काट्टूगां तेरी नैड.
बगड़ बिच खडी कर कै.
पिया म्हारा कोई न दोष ,
नाडा तो थारा अब बी लटकै.

कुंवर सत्यम.

This work is a part of my book " Khadar Culture." under publication. All rights are reserved with me.no part of this work can be reproduced in any form..Prior permission of the author is compulsory for any reference.

Sunday, September 25, 2011

खादर क्षेत्र के हास्य लोक गीत-1


खादर क्षेत्र के लोग बड़े ही हंसमुख हैं.हंसी-मजाक , ठिठोली यहाँ के खुशहाल जीवन का एक अंग है.यहाँ के लोकगीतों में हास्य की भरमार है, शादी-ब्याह जैसे अवसरों पर अनेक हास्य गीत महिलाओं द्वारा अक्सर गाये जाते है. कुछ हास्य लोक गीत इस प्रकार है....

९० के दशक से पहले खादर क्षेत्र अल्प विकसित था..गैर खादर क्षेत्र की एक लड़की खादर में ब्याही जाती है.ससुराल से अपने मायके जाकर अपनी सहेलियों को वह अपने अनुभवों के बारे में बताती है..

हे मैंने सुधियाइ  उठ कै पिस्स्या,
ढाई सर की चटणी बणाइ .
खाद्दर मै कोई मत ब्याहियो ...

मैन्ने सोला रोट्टी बणाइ ,
ढाई सर की चटणी बणाइ .
मै सिद्धि इ सरड़क चाल्ली,
मेरे पिच्छे काला कुत्ता.
हे खाद्दर मै ................

मै चारो और लखाई,,
मुझै ढोलू कहीं न दिक्ख्या हे.
उसनै सोला इ रोट्टी खाई,
ढाई सर की चटणी खाई.
ढोलू कै उठया मरोड़ा.
उसनै मुश्किल पकडया बटोडा ..
हे खादर मै...

कुंवर सत्यम..

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खादर संस्कृति का प्रतीक "सांझी"

खादर संस्कृति का प्रतीक "सांझी" खादर क्षेत्र में (आश्विन माह ) के नोरते ( नवरात्र) के रूप में मनाया जाता है।
 नो दिन तक लगातार खादर क्षेत्र देवी दुर्गा के लिए गाये जाने वाले लोकगीतों से गुंजायमान रहता है। 
लोक गीतों के माध्यम से दुर्गा-भक्त माँ दुर्गा के प्रति अपनी भक्ति प्रदर्शित करेंगे. इस दौरान खादर क्षेत्र में विशेष-कर बालिकाओं एवं महिलाओं द्वारा प्रातः एवं सायं माँ दुर्गा की स्तुति की जाती है तथा नवरात्र के नो व्रत रखे जाते है. अंतिम व्रत दुर्गाष्टमी अथवा नवमी को होता है. इस दौरान बालिकाओं एवं महिलाओं द्वारा सुन्दर सान्झियों एवं उसके सैनिकों,चाँद-तारों एवं विभिन्न पशु-पक्षियों की मूर्तियाँ बनाई जाती है.ये सभी सांझी (माँ दुर्गा ) के सहयोगी के रूप में सांझी के साथ स्थापित किये जाते है. जों बोकर 
 नोरते उगाये जाते हैं.अष्टमी एवं नवमी के दिन ये नोरते बहनों द्वारा अपने भाइयों के कान पर रखे जाते हैं.बदले में भाई अपनी बहनों को पैसे देते है. कुछ सन्यासी भी ऐसा करते हैं.

 इस अवसर पर खादर में देवी दुर्गा के लिए गाये
 जाने वाले लोक गीत इस प्रकार होते है.

 ए या देबी रही पुकार.
 छतर सोन्ने का मांग रही.
या बिंदी रही सजा ,
टिक्का होर मांग रही.
 ए या देबी रही पुकार...
या कुण्डल रही सजा
 झुम्मर होर मांग रही. .
ए या देबी रही पुकार..
 या पेंडिल रही सजा
 कोलिर होर मांग रही...
 ए या देबी रही पुकार..


सांझी की तैयारी
सांझी अर्थात साझी अर्थात सामुहिक अर्थात जो सबकी हो ऐसी मां!
खादर क्षेत्र में दुर्गा।माँ के लिए सांझी शब्द का ही प्रयोग किया जाता रहा है।नवरात्र में जब ग्रामीण क्षेत्र में दुर्गा माँ का पूजन होता है तो वह सांझे भाव से ही किया जाता था।घरों में लड़कियां और बहुए तालाब की मिट्टी से मां दुर्गा का पूरा दरबार बनाकर तैयार करती उनमें खुशियों के रंग भरती और नवरात्र शुरू होने की पूर्व संध्या पर घर के सबसे पवित्र स्थान पर माँ का दरबार सजाती हैं।सांझी दो विधियों से बनाई जाती है:
दीवार पर गाय के गोबर की मदद से चिपकाने के लिए।
पटरी पर बैठने की मुद्रा में दरबार सजाने के लिए।
  सामान्यतः प्रथम विधि ही ज्यादा प्रचलित है। लड़कियां मां के सम्पूर्ण दरबार का निर्माण करती है जिसमे चाँद, तारे,शेर एवं अन्य पशु,पक्षी,टिकली,माँ के आभूषण जिन्हें गहणे कहा जाता है,मां के वस्त्र आदि सब कुछ मिट्टी से बनाकर रंगों से सजाकर जीवट बनाया जाता है।मां के दरबार में दरबार का मनोरंजन करने की दृष्टि से धोलाकिये,बैंड ,बाजा आदि भी मिट्टी से बनाकर बैठाए जाते थे।
मुहल्ले की लड़कियों में सबसे सुंदर सांझी बनाने की होड़ रहती थी।एक दूसरे की सांझी को उनके घर जाकर देखकर आना इन दिनों की एक सामान्य प्रक्रिया बन जाती है।

 रंग भरने की प्रक्रिया:
 अंतिम कनागत (श्राद्ध) अर्थात अमावस्या के दिन तैयार किये गए समस्त सांझी दरबार मे रंग भरने का दिन होता है।सुभं से तैयारी शुरू होकर शाम तक चलती है।प्रातः हर मृण्मूर्ति में खड़िया से सफेद रंग भरकर मूर्ति को आधार रंग प्रदान किया जाता है।इसके दो लाभ है:
1- मूर्ति में रंगों की कम खपत
2- रंगों में चमक उतपन्न हो जाती है

 खड़िया का घोल बनाकर किसी बड़े बर्तन तसले अथवा बाल्टी में लिया जाता है जिसमे सांझी दरबार हेतु तैयार मृण्मूर्तियों को डुबोकर तर किया जाता है जिससे वे सभी भूरे रंग की हो जाती हैं।इसके बाद इन मृण्मूर्तियों को सूखने दिया जाता है।सूखने के बाद सायंकाल तक अन्य रंगों से सजाने के काम होता है। विभिन्न रंगों से सांझी मृण्मूर्तियां गाय के गोबर से चयनित स्थान पर चिपका कर एक मूर्ति का रूप दे दिया जाता है अथवा बैठने की मुद्रा में पटरी पर दरबार सजाकर सांझी की स्थापना की जाती है।इसके बाद पूजा के लिए सांझी दरबार तैयार हो जाता है।
सांझी पूजा:
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सुबह एवं संध्या में विधिवत घर की कन्याएं एवं छोटे बच्चे पूरे उत्साह के साथ सांझी मां की आरती करने के बाद सर्वप्रथम सांझी को भोग लगाते हैं उसके बाद दरबार मे उपस्थित समस्त दरबार गणों को भोग लगाते हैं।आरती के लिए पूरे खादर क्षेत्र में कुछ स्थानीय शब्दों के परिवर्तन के साथ एक जैसी आरतियां ही प्रचलित हैं।
अपने घर मे आरती करने के बाद लड़कियां एवं बच्चे पड़ोस के घरों में भी सांझी आरती में शामिल होकर प्रसाद पाते हैं।इसके लिए वे अपने घर से आरती पात्र एवं उसमे जलता दीपक लेकर ही सामान्यतः पड़ोस में सांझी आरती के लिए जाते हैं।
विसर्जन:
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दुर्गाष्टमी को प्रातःकाल सांझी में के लिए घर में तरह तरह के पकवान सामर्थ्यानुसार साधकों द्वारा बनाये जाते हैं।सांझी की आरती एवं भोग लगाने के बाद सात अथवा नौ कन्याओं को पैर प्रक्षालन(धोने)के बाद तिलक करके भोजन कराया जाता है।कन्याओं को सामर्थ्यानुसार पैसे अथवा उपहार देकर विदा किया जाता है।अगले दिन अर्थात नवमीं को प्रातःकाल सांझी मां की आरती के बाद उनकी विदाई की तैयारी होती है।सांझी मां को उनके दरबार सहित स्थापना स्थल से नजदीकी नदी,राजवाहे अथवा तालाब में विसर्जित किया जाता है।मूर्ति विसर्जन एक सामान्य प्रक्रिया है।जिसे समझना आवश्यक हैं।
क्योंकि मूर्तियां मिट्टी से निर्मित की गई थी।चयनित स्थल पर प्राणप्रतिष्ठा के बाद मां उस स्थल पर भक्तों के बीच उन मूर्तियों के प्रतीक स्वरूप विराजमान रहती है जिसकी भक्त आराधना करते हैं,आरती करते हैं और मां को भोग लगाते है।नवरात्र के अंतिम दिन सांझी मां क्योकि देविलोक प्रस्थान कर जाती हैं अतः उसके बाद वें मूर्तियां मिट्टी तुल्य ही रह जाती है।हिन्दू धर्म की यह मान्यता है कि प्रकृति से जितना लिया है उतना उसे वापस भी करना चाहिए।जिस प्रकार व्यक्ति के शरीर से उसकी सांसे निकल जाने का पश्चात शरीर की कोई अहमियत नही है।सगे सम्बन्धी ही शमसान ले जाकर स्वांस रहित शरीर(मृत शरीर) का दाह संस्कार कर देते हैं, मुस्लिम उसे दफना देते हैं।ठीक उसी प्रकार सांझी मां के प्रस्थान के बाद मिट्टी की यह सांझी स्वरूप मूर्तियां पृकृति को मिट्टी रूप में ही वापस करने के लिए विसर्जित कर दी जाती हैं।जल में विसर्जन इसलिए ताकि वह गलकर उसे गारे के स्वरूप में प्रकृति को प्राप्त हो सके जिस स्वरूप में उसे मूर्ति निर्माण के लिए भक्तों द्वारा प्रकृति से ग्रहण किया गया था।।



This work is a part of my book " Khadar Culture." under publication. All rights are reserved with me.no part of this work can be reproduced in any form..Prior permission of the author is compulsory for any reference.

Saturday, September 24, 2011

"खादर लोक महोत्सव "

खादर मित्रों, खादर संस्कृति को एक समन्वित रूप देने,इस संस्कृति के उत्थान, प्रचार एवं प्रसार के लिए वर्ष में एक बार खादर क्षेत्र के मध्यवर्ती क्षेत्र ( कैराना-गंगोह के बीच कहीं ) में "खादर लोक महोत्सव " का आयोजन का आयोजन शुरू किया जाना चाहिए. हर वर्ष इसकी अलग - अलग थीम राखी जा सकती है. इस महोत्सव में खादर संस्कृति की प्रस्तुतियां होनी चाहिए. रागिनी, स्वांग, नोटंकी, सांझी प्रतियोगिता आदि, खादर युवाओं के लिए कैरियर सलाह भी उपलब्ध कराइ जा सकती है ताकि उनकी राह आसान हो सके. कृपया अपने विचार जरुर रखे. कुंवर सत्यम.

National Seminar on “Honour Killing: Problem & Solutions “

Seminar organised by FEAP India on the topic
“Honour Killing: Problem & Solutions “
7th July 2010.