Wednesday, September 28, 2011

खादर क्षेत्र के हास्य लोक गीत-४


खादर क्षेत्र के हास्य लोक गीत-४

मै भरण गई जल नीर,
कुँए पै परदेशी.
हो छोरी तन सा नीर पिलै दै.
मै कद का फिरूँ तिसाया.. हो नोटंकी .
हो थोडा सा परे नै होले हो ,
मेरी छींट लगै सैढी पै हो परदेशी.

तो कोण से खेत का रोड़ा ,
मै असल गोप केले की हो परदेशी.

हो तो कोण सी गली का पत्थर ,
मै असल ईंट चोबारे की हो परदेशी.
तो कोण से  खेत का गन्ना ,
मै असल कली फुल्लो की हो परदेशी

मै खेत्तो रै खेत्तो घुम्या,
न मिली गोप केले की..हो नोटंकी .
मै गलियों रै गलियों फिरग्या,
न मिली ईंट चोबारे की हो नोटंकी.

तो मेरी रै गेल्लो चलिए.
मेंरै इकसठ रैणी है.,
मै उनकी बणाउ पटरैणी
मै अपणे रै धरम तै ना जैणी
तेरे आग लगै महल्लो मै
तेरी मरियो इकसठ रैणी ..

कुंवर सत्यम.

यह गीत मेरी पुस्तक " खादर संस्कृति" का संकलित अंश है. यह भारतीय कोपी राइट एक्ट के अंतर्गत मेरे नाम से सुरक्षित है .इसका किसी भी अन्य रूप में प्रयोग वर्जित है.सन्दर्भ के लिए मेरी लिखित अनुमति आवश्यक है..
धन्यवाद.

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